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कैसी तकदीर

दीपक 'कुल्लुवी' की कलम से.................
दीपक 'कुल्लुवी' की कलम से.................
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कैसी तकदीर
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कैसी तकदीर ले के दुनियां में हम आए हैं
ज़ख्म-ए-दिल पे ही तो इलज़ाम उनके खाए हैं
कैसी तकदीर ले के दुनियां ————-
हम गुनहगार नहीं फिर भी गुनहगार सही
क्या कहें किससे कितनें धोखे हमनें खाए हैं
ज़ख्म-ए-दिल पे ही तो इलज़ाम उनके खाए हैं
कैसी तकदीर ले के दुनियां ————-
वक़्त-ओ-हालत मुकद्दर ही बदल देते हैं
हम तो अपनों के ही सताए हैं
ज़ख्म-ए-दिल पे ही तो इलज़ाम उनके खाए हैं
कैसी तकदीर ले के दुनियां ————-
दीपक ‘कुल्लुवी’ को परखने की भूल न करना
हँसते हँसते हमनें खंज़र दिल पे खाए हैं
ज़ख्म-ए-दिल पे ही तो इलज़ाम उनके खाए हैं
कैसी तकदीर ले के दुनियां ————-

दीपक कुल्लुवी


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