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कहानी (अपनी शर्म के लिए)

दीपक 'कुल्लुवी' की कलम से.................
दीपक 'कुल्लुवी' की कलम से.................
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कहानी
अपनी शर्म के लिए

आज राखी का पावन त्यौहार था I बेचारा गरीब सुबह से ही नहा धोकर नई टी शर्त पहन कर बैठ गया किसी कोरियर वाले या डाकिए के इंतज़ार में क्योंकि उसकी कहने को तो चार बहनें थी लेकिन उनकी राखी उसे अब तक न मिली थी लेकिन उसे पूरी उम्मीद थी की आज तो राखी आएगी ज़रूर जिन्हें वह अपनी कलाई में पहनेगा I

दोपहर हो गई  लेकिन किसी कोरियर वाले या डाकिए ने दस्तक नहीं दी I बेचारा बार बार बेचैनी से कभी बाहर निकलता कभी बालकनी से नीचे झाँकता लेकिन  सब व्यर्थ I इंतज़ार इंतज़ार ही रहा शाम होने को आ गयी लेकिन न  कोई कोरियर वाला ही आया और न  डाकिया I शर्म के मारे बेचारा घर से बाहर भी नहीं निकला क्योंकि उसकी सूनी कलाइयाँ देखकर गली मोहल्ले वाले पूछते ज़रूर की राखी क्यों नहीं पहनी….? क्योंकि सबको मालूम था की उसकी चार चार बहनें हैं I
साँझ ढलते ही उसनें अपनी धर्मपत्नी से कहा मुझे ज़रा बाज़ार जाना है कोई पूरी बाजू वाली कमीज़ ला दो……पूरी बाजू वाली कमीज़…….उसकी पत्नी ने हैरान होकर पूछा इतनी गर्मी में………और  इतनी शानदार टी शर्त तो पहनी ही  है फिर उसकी क्या ज़रुरत ….? यह सुनकर उसका पति बोला……मैं अगर पूरी बाजू वाली कमीज़ नहीं पहनूँगा  तो बेचारी मेरी बहनों की बेईज्ज़ती हो जाएगी ………………..I अपनी शर्म के लिए मुझे यह सब करना पड़ेगा
दीपक ‘कुल्लुवी’
01 -08 -2012
09350078399

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