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हाहाकर

दीपक 'कुल्लुवी' की कलम से.................
दीपक 'कुल्लुवी' की कलम से.................
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मानसून की पड़ रही मार
मचा हुआ है हाहाकर
चारों तरफ  है पानी ही पानी
उफनती नदियाँ  बाढ़  ही बाढ़
परिणाम स्वरूप महँगाई बढ़ गयी
गरीब की हंडिया ख़ाली रह गयी
घर टूट गए खेत उजड़ गए
बेबस अखियाँ मन है उदास

दीपक ‘कुल्लुवी’
२८/८/१२.

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