दीपक 'कुल्लुवी' की कलम से.................
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कुकर्मों का हो गया हिसाब
फाँसी पर लटके मियां ‘कसाव’
खुद भी मरे बेगुनाहों को मारा
जिंदगी अपनीं की बर्वाद
पाप करके कोई बच नहीं सकता
कोई जख्म किसी के भर नहीं सकता
आखरी लम्हों में गुनहगारों को भी
रब्ब आता है याद
कानून भी अपना इतना लचीला
करोड़ों का खज़ाना कर दिया ढीला
इक आतंकी को सज़ा देनें के लिए
लगा दिए इतने साल
दीपक कुल्लुवी
21-11-12
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